अमेरिका-ईरान के बीच तनाव, उड़ी मोदी सरकार की नींद


अजय कुमार, लखनऊ।
 विकास के मामले में भारत भले ही दुनिया में अपनी पहचान नहीं बना पाया हो लेकिन अन्तरराष्ट्रीय मंच पर अपने देश की अहमियत को कभी किसी ने कम करके नहीं आका। खासकर जब से केन्द्र में मोदी सरकार आई है तब से भारत अन्तराष्ट्रीय हनक-धमक और भी बढ़ गयी है। मोदी की आवाज को दुनिया गम्भीरता से सुनती है। पीएम संतुलन बनाकर आगे बढ़ते हैं, इसी वजह से उनके अमेरिका से भी अच्छे सम्बन्ध हैं तो रूस भी उन पर विश्वास करता है। परस्पर विरोधी इजरायल-फिलीपींस ही नहीं मुस्लिम देशों में भी मोदी का सिक्का चल रहा है, इसीलिये तो अमेरिका और ईरान के बीच की दूरियों को अनदेखा करके मोदी दोनों ही देशों को साथ लेकर आगे बढ़ रहे थे लेकिन लगताा है अब मोदी की इम्तिहान की घड़ी आ गई है। मोदी सरकार अमेरिका-ईरान के बीच बढ़ते तनाव, युद्ध जैसे हालातों से काफी चिंतित है। भारत जानता है कि मौजूदा परिस्थिति में भारत के लिये जिनता अहम अमेरिका है, उतना ही महत्व ईरान का है। अमेरिका के साथ तो भारत के व्यापारिक रिश्ते हैं ही, ईरान के साथ भी मोदी सरकार ने कई व्यवसायिक करार किए हैं। भारत के अमेरिका और ईरान दोनों के साथ अच्छे ताल्लुकात हैं। निवेश के नजरिये से भी ये दोनों देश भारत के लिये अहम है। अमेरिका और ईरान के बीच युद्ध होने पर भारत को काफी बड़ा आर्थिक नुकसान होगा। भारत का 100 बिलियन से ज्यादा का व्यापार खाड़ी देशों से होता है और बड़े पैमाने पर निवेश भी इन इलाकों से है। खासकर चाबहार बंदरगाह पर असर पड़ सकता है। भारत और ईरान के बीच साल 2014 में चाबहार बंदरगाह और जाहेदान रेल परियोजना को लेकर करार हुआ था। दोनों देशों के बीच चाबहार बंदरगाह को विकसित करने के लिये भारत के 85 मिलियन डालर निवेश का समझौता हुआ था। युद्ध की स्थिति में इस पर भी असर पड़ेगा।
 इन दोनों देशों के बीच जंग से भारत को दोहरा झटका लगेगा, इसलिये भारत लगातार दोनों देशों के सम्पर्क में है और तनाव कम करने की कोशिश में लगा है। इसके साथ सरकार ने ईरान में रहने वाले भारतीयों और वहां जाने वाली विमान सेवाओं के लिये एडवाइजरी भी जारी कर दी है। पूर्व नौकरशाह और विदेश मंत्री एस. जयशंकर पूरे हालात पर नजर रखे हुये हैं। ईरान और अमेरिका के बीच युद्ध छिड़ता है तो सबसे बड़ी चुनौती वहां रहने वाले भारतीय नागरिकों को वहां से निकालने की होगी। इसके लिये भारत को  ओमान और यूएई की मदद लेनी पड़ सकती है।
 आंकड़ों के अनुसार पश्चिम एशियाई देशों में करीब 80 लाख भारतीय रहते हैं। इसमें से ज्यादातर फारस की खाड़ी के तटीय इलाकों, ईरान के करीब संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, कतर और कुवैत में रहते हैं। अकेले ईरान में 4000 भारतीय रहते हैं। अमेरिका और ईरान में और तनाव बढ़ता है तो खासकर खाड़ी देशों में रह रहे लोग देश वापस आ जायेंगे। इससे भारत को आर्थिक मोर्चे पर काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। खाड़ी देशों ज्यादातर लोग कमाने के लिये जाते हैं और वहां से बड़ी तादाद में वे अपने घरों में पैसे भेजते हैं। जो पैसा आता है, वह देश के विदेशी मुद्रा भण्डार का एक अहम हिस्सा बनाता है। अगर ये लोग वापस आये तो भारत को काफी नुकसान होगा।
 मोदी सरकार ईरान से अधिक अमेरिका को लेकर चिंतित है। ईरान के साथ युद्ध जैसे हालात के बीच ट्रम्प प्रशासन को इन इलाकों में अपनी मजबूत पकड़ बनाने के लिये पाकिस्तान की जरूरत पड़ेगी। अपने पाले में पाकिस्तान को लाने के लिये अमेरिका, पाकिस्तान को आर्थिक मदद कर सकता है। जैसे  उसने अफगानिस्तान पर हमला करते समय पाकिस्तान की मदद ली थी जिसके बाद पाक ने भारत में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देना शुरू कर दिया था। वैसे भी अमेरिका आतंकवाद को लेकर हमेशा दोहरा रवैया अख्तियार करता भी रहा है। अमेरिका ने ईरान को सबक सिखाने के लिये अगर पाकिस्तान की मदद ली तो इससे आतंकवाद पर पाकिस्तान को घेरने के भारतीय अभियान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर करारा झटका लग सकता है। साथ ही अफगानिस्तान में भी भारत के हितों को नुकसान हो सकता है। इस समय अफगानिस्तान और भारत के सम्बन्ध काफी बेहतर हैं जो पाकिस्तान बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है। भारत का अफगानिस्तान में निवेश भी हो रखा है।
 अमेरिका-ईरान तनाव को लेकर भारत इस लिये भी चिंतित है, क्योंकि भारत अपनी जरूरत का 83 फीसदी तेल ईरान से ही खरीदता है। अमेरिका और ईरान में तनाव से कच्चे तेल की कीमतों में भी लगातार इजाफा हो रहा है। गत दो दिनों में ही कच्चे तेल की कीमत 4.4 फीसदी बढ़कर 69.16 डालर प्रति बैरल पर पहुंच गयी है। वहीं रुपया 42 पैसे टूटकर 71.80 प्रति डालर पर आ गया। जंग की स्थिति में विदेशी मुद्रा परिवर्तन (फारेन एक्सचेंज) पर भी असर पड़ेगा। फारेन एक्सचेंज बढ़ा तो लोगों की क्रय शक्ति कम हो जायेगी जिससे मंदी और गहरा जायेगी। परिणाम स्वरूप खाने-पीने की चीजें, ट्रांसपोर्ट, रेलवे, प्राइवेट ट्रांसपोर्ट पर भी असर बुरा असर होगा। बेरोजगारी जो पहले से ही समस्या बनी है, वह भी और खतरनाक रूप धारण कर लेगी। कच्चे तेल के दाम बढ़ने से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में इजाफा होगा। तेल के दाम बढ़ने से महंगाई बढ़ेगी। इसका सीधा असर लोगों की जेब पर पड़ेगा। सरकार लगातार महंगाई दर पर काबू पाने की कोशिश कर रही है। अमेरिका-ईरान के बीच युद्ध की स्थिति में महंगाई दर के मोर्चे पर सरकार को तगड़ा झटका लग सकता है। नवम्बर में खुदरा महंगाई दर में खासी बढ़ोतरी दर्ज की गयी। नवम्बर में खुदरा महंगाई दर 4.62 फीसदी से बढ़कर 5.54 फीसदी हो गयी थी।
 खाड़ी देशों में अक्सर तनाव का माहौल बना रहता है जिससे तेल की कीमतों में भी उतार-चढ़ाव आता रहता है जो अर्थव्यस्थता के लिये घातक होता है। संभवता इसीलिये मोदी सरकार ऊर्जा के क्षेत्र को काफी अहमियत दे रही थी। कई लुभावने उपायों से इलेक्ट्रानिक वाहनों का विस्तार किया जा रहा है। मगर अभी भी इस क्षेत्र में काफी काम होना है। दोनों देशों के बीच अगर युद्ध हुआ तो भारत को कच्चा तेल आयात करने में भी दिक्कत आयेगी। वैसे यहां यह याद दिला देना जरूरी है कि पिछले दो सालों में ईरान और अमेरिका के बीच जारी तनाव को देखते हुये भारत ने ईरान से तेल आयात को काफी  कम कर दिया है लेकिन अभी भी ईराक, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात से भारत को सबसे अधिक तेल आयात होता है। बात तेल आयात के मार्ग से भी जुड़ी है। भारत तक तेल पहुंचने का रास्ता फारस की खाड़ी में होर्मुज गलियारे से होकर गुजरता है जो तनाव वाले क्षेत्र का ही हिस्सा है। अगर भारत को कहीं और से तेल लेना पड़ा तो आर्थिक मंदी के इस दौर में भारत के लिये मंहगा तेल आयात करने की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। देश में कई मोर्चो पर समस्याएं आ जायेंगी।
 अमेरिका और ईरान टकराने का असर दुनिया भर के शेयर बाजारों पर दिख रहा है। भारतीय शेयर बाजार भी इससे अछूता नहीं है। बीते सप्ताह सेंसेक्स 162.03 अंक की गिरावट के साथ 41,464.61 पर बंद हुआ। निफ्टी की बंदी 55.55 प्वाइंट नीचे 12,226.65 पर हुई थी। उसके बाद सोमवार को भी बाजार में भूचाल बना रहा। सेंसेक्स 700 अंक और निफ्टी 200 से ज्यादा अंक लुढ़क गया। विदेशी निवेशक बड़े पैमाने से भारतीय बाजार से पैसे निकाल रहे हैं। वहीं भारतीय निवेशक भी घबराये हुये थे। इस बीच मंगलवार को सेंसेक्ट पटरी पर लौट आया तो राहत की सांस मिली। ग्लोबल चिंताओं के चलते सोमवार को जोरदार गिरावट झेलने वाले भारतीय बाजारों मंे मंगलवार को रौनक लौटी। संेंसेक्स 192.84 अंकों की बढ़त के साथ 40,869.47 पर बंद हुआ। दिन के कारोबार में 500 से ज्यादा अंकों की बढ़त लेते हुये इसने 41,230.14 अंकों का ऊंचा स्तर छू लिया था। वहीं निफ्टी भी 59.90 अंक सुधकर 12 हजार का मनोवैज्ञनिक आंकड़ा पार कर गया। यह 12,052.95 के स्तर पर बंद हुआ। तनाव के बीच सोने के दाम में भी बढ़ोत्तरी बनी हुई है।
 अमेरिका-ईरान के बीच अगर कुछ भी ऊंच-नीच होती है तो हर हाल में अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिये वित्तीय घाटे को कम करने में जुटी मोदी सरकार को कुछ और बड़ी चुनौतियां घेर लेंगी। 30 नवम्बर तक देश का वित्तीय घाटा 8.07 लाख करोड़ रुपये था। जानकार कहते हैं। वित्तीय घाटे पर जब लगाम लगेगी तभी आर्थिक ग्रोथ संभव है लेकिन ईरान और अमेरिका में तनाव से सरकार की आमदनी घट जायेगी और खर्चा बढ़ जायेगा। इससे वित्तीय घाटे के मोर्चे पर सरकार को झटका भी लग सकता है। निचोड़ यह है कि अमेरिका-ईरान के बीच युद्ध हुआ तो भारत के एक तरफ खाई तो दूसरी तरफ कुंए जैसे हालात होंगे। इसी के चलते मोदी सरकार भी हैरान-परेशान है। इस हैरानी-परेशानी की बानगी नजर भी आने लगी हैं। दोनों देशों के बीच बढ़े तनाव का असर भारतीय निर्यात पर दिखना शुरू हो गया है। घरेलू व्यापार संगठन आल इण्डिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (एआईआरईए) ने निर्यातकों से हालात सामान्य होने तक तेहरान को बासमती चावल का निर्यात रोकने को कहा है। वहीं चाय उद्योग ने चिन्ता जताते हुये कहा है कि दोनों देशों के बीच तनाव से तेहरान को होने वाले चाय के निर्यात पर भी असर पड़ सकता है। टी. बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक ईरान को नवम्बर 2019 तक 5.043 करोड़ किलोग्राम चाय का आयात किया गया जबकि सीआईएस देशों को कुल 5.280 करोड़ किलोग्राम चाय का निर्यात किया गया।