चार दशक पुराने बेहमई काण्ड पर फैसला

चार दशक पुराने बेहमई काण्ड पर फैसला
अजय कुमार, लखनऊ।
 किसी नारी के स्वाभिमान को कुचलना और उसकी इज्जत के साथ खिलवाड़ करने का अंजाम कितना खतरनाक हो सकता है। इस बात का सबसे बड़ा सबूत 80 के दशक का बेहमई काण्ड है जिसे कुछ ठाकुरों की हवस की शिकार बनी गांव की एक लड़की ने अंजाम दिया था। यह लड़की आगे चलकर फूलन देवी के नाम से दहशत का पर्याय बनी। अपने बाप की जमीन बचाने के लिये मात्र 10 वर्ष की उम्र में चाचा से भिड़ जाने वाली फूलन देवी की उदण्डता से परेशान होकर उसके बाप ने फूलन की शादी उससे 30 साल बड़े व्यक्ति से कर दी जिसके लिये फूलन हवस के समान से अधिक कुछ नहीं थी। फूलन की सेहत खराब होने लगी तो उसके पति ने उसे उसके मायके भेज दिया। उसके भाई ने उसे कुछ दिन तो साथ में रखा लेकिन बाद में वह उसे वापस ससुराल छोड़ आया। उधर फूलन के पति जिसने दूसरी शादी कर ली थी, फूलन को घर में नहीं घुसने दिया। इसके बाद फूलन का उठना-बैठना दबंग किस्म के लोगों के साथ शुरू हो गया। गांव की पगडण्डियों को छोड़कर चम्बल के बीहड़ों को फूलन ने अपना नया ठिकाना बनाया। बीहड़ों में रहते ही उसको गैंगरेप का भी शिकार होना पड़ा। गैंगरेप करने वाले ठाकुर बिरादरी के लोग थे जिनको मारकर फूलन ने अपना इंतकाम पूरा किया जिसे लोग बेहमई काण्ड के नाम से जानते हैं जहां उसने 22 ठाकुरों को लाइन में खड़ा करके गोलियों से भून दिया था।
 उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव गोड़हा का पूर्वा मंे कथित रूप से नीची जाति माने जाने वाले मल्लाह परिवार में पैदा हुई फूलन देवी को बेहमई गांव के राजपूतों ने एक बन्द कमरे में 3 सप्ताह का मार-पीटा और उसके साथ बलात्कार किया था। इतना ही नहीं, फूलन को हवस का शिकार बनाने वाले ठाकुरों द्वारा उसे पूरे गांव में नंगा करके घुमाया गया। एक-दो दिन नहीं, बल्कि पूरे 3 सप्ताह तक फूलन के जिस्म को भूखे भेड़ियों ने नोचा-खसोटा। एक दिन फूलन मौका पाकर ठाकुरों के चंगुल से भाग गयी। इसके बाद कुछ महीनों तक उसका कहीं कोई पता नहीं चला। प्रतिकार की आग में जल रही फूलन 14 फरवरी 1981 की शाम को अपने गिरोह के साथ बेहमई पहुंची और 22 लोगों को लाइन में खड़ा करके मौत के घाट उतारा दिया था।
 दस्यु सुन्दरी फूलन देवी द्वारा 22 लोगों की निर्मम हत्या के कारण चर्चा में आये बेहमई काण्ड पर 6 जनवरी 2020 को फैसला आने की संभावना है। 14 फरवरी 1981 को हुये नरसंहार मामले की सुनवाई बीते दिनों कानपुर देहात जिले की स्पेशल जज (डकैत प्रभावित क्षेत्र) में पूरी हो गयी। सरकारी वकील राजू पोरवाल के अनुसार 2011 से शुरू हुये ट्रायल में 5 आरोपित थे जिनमें से मुख्य आरोपी फूलन देवी की 2001 में दिल्ली में हत्या कर दी गयी थी। आरोप है कि कानपुर देहात जिले में यमुना के बीहड़ में बसे बेहमई गांव में दस्यु सुन्दरी फूलन देवी ने अपने गैंग के कई अन्य डकैतों के साथ 22 लोगों की हत्या कर दी थी। इसमें बेहमई गांव के राजपूत बिरादरी से सम्बन्ध रखने वाले 17 लोग थे।
 दस्यु सुन्दरी फूलन ने लाला राम व श्रीराम से अपने शोषण का बदला लेने के लिये नरसंहार किया था। इस नरसंहार ने देश-दुनिया में तहलका मच दिया था। पुलिस ने डकैतों के खिलाफ अभियान चलाया। कई डकैतों की मुठभेड़ में मौत हो गयी तो कुछ ने प्राकृतिक तौर पर दम तोड़ दिया था। पुलिस ने नरसंहार की प्राथमिकी में फूलन देवी, राम औतार, मुस्तकीम, लल्लू गैंग सहित 35-36 अन्य डकैतों का आरोपित बनाया था।
 नरसंहार के दो साल बाद फूलन ने मध्य प्रदेश में आत्मसमर्पण कर दिया था। इसके बाद वहां की जेलों में कई साल गुजारे। 90 के दशक में फूलन ने सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया और समाजवादी पार्टी के टिकट पर दो बाद सांसद बनीं। 2001 में दिल्ली में फूलन की हत्या कर दी गयी थी। लम्बी कवायद के बाद 2011 में कानपुर देहात की विशेष अदालत में रामसिंह, भीखा, पोसा, विश्वनाथ उर्फ पुतानी और श्याम बाबू के खिलाफ आरोप तय हुये और ट्रायल शुरू हुआ। राम सिंह की जेल में मृत्यु हो गयी। फिलहाल पोसा ही जेल में है। केस में 15 लोगों की गवाही हुई। फूलन सहित कई अन्य की मौत हो जाने के बाद उनका नाम केस से बाहर कर दिया गया। नरसंहार के आरोपित 3 डकैत रामकेश, विश्वनाथ व मान सिंह लगातार फरार हैं। कोर्ट के आदेश पर इनकी सम्पत्ति कुर्क की जा चुकी है। इनके खिलाफ कोर्ट ने स्थायी तौर पर गैरजमानती वारण्ट जारी कर रखा है।
 बेहमई काण्ड पर आने वाले अदालत के फैसले से इत्तर की बात की जाए तो हमें अतीत में जाना होगा। मैंने बेहमई काण्ड की रिपोर्टिंग लखनऊ से घटनास्थल पर जाकर की थी। जो देखा था, वह कुछ इस तरह से था। आज भले ही भौगौलिक और जनसंख्या के हिसाब से काफी फेरबदल हो गया हो लेकिन 4 दशक पूर्व यमुना नदी के दोनों तरफ के जिलांे कानपुर व जालौन में ठाकुरों के कुल 72 गांव हुआ करते थे। कहा जाता था कि यह ठाकुर मूल रूप से राजस्थानी थे और औरंगजेब के जमाने में मेवाड़ से इस क्षेत्र में आकर बस गये थे, इसीलिये इन्हंे मेव ठाकुर कहा जाता था। जब यह लोग यहां आकर बसे थे तब इनके 84 गांव थे। शरीर से खूब तंदुरूस्त ठाकुरों के अनोखे रीति-रिवाज थे। मसलन इनके यहां शादियां आपस में ही होती थीं। फिर समय बदला और कुछ ने अपने को इन रिवाजों से अलग कर लिया लेकिन अभी भी मेव ठाकुरों के 72 गांवों में यह रिवाज चल रहा है और इनकी आपस में ही रिश्तेदारियां हैं। लाला राम व श्रीराम भी मेवी ठाकुर थे जिन्होंने फूलन देवी को अपनी हवस का शिकार बनाया था जिनकी तलाश में फूलन 14 फरवरी 1981 को बेहमई पहंुची थी। 
 बेहमई काण्ड को समझने से पहले हमें इस क्षेत्र का इतिहास भी जानना जरूरी है। यह पूरा इलाका कभी नामी डकैतों के कारनामों से गंूजा करता था। इन डकैतों की दहशत जिला एटा, मैनपुरी, कानपुर, आगरा, इटावा, आगरा, इटावा से सटे राजस्थान व मध्य प्रदेश तक के जिलों में फैली हुई थी। इस पूरे क्षेत्र का चम्बल की घाटियों के साथ यमुना, कुंवारी, पहुंज व बेतवा नदी ने भयानक बीहड़ बनाया था जिसमें डाकुओं को निरापद आश्रय मिलता था। दस्यु छवि राम, पोथी यादव हैं तथा मलखान सिंह जैसे डाकुओं के गिरोह की यहां तूती बोलती थीं। यह आपस में बंटे थे जिन्हें दस्यु विक्रम मल्लाह ने बाद में आपस में मिला दिया था। विक्रम के जीते जी इस इलाके में मुस्तकीम ही दूसरा बड़ा डाकू था लेकिन वह भी विक्रम से मिलकर ही अपनी योजनाएं बनाता था। इस समय तक क्षेत्र में कोई बंटवारा नहीं था। विक्रम के नाम से पुलिस भी खौफ खाती थी। वह उसे डकैतों का मास्टर माइण्ड समझती थी, इसीलिये विक्रम पुलिस के निशाने पर था। विक्रम को समाप्त करने के लिये कानपुर के पुलिस इंस्पेक्टर श्यामवीर सिंह राठौर ने एक चाल चली। उन्होंने विक्रम के गिरोह में शामिल मेव राजपूत लाला राम व श्रीराम से सजातीय आधार पर सम्पर्क साधा। दोनों ने पुलिस के समर्थन का आश्वासन पाकर अपनी ससुराल बैरामऊ में सोये विक्रम व उसके साथी बारे लाल को मार दिया तथा फूलन को लेकर भाग गया। साथ में 7 आदमी और थे। सभी 9 लोगों ने 22 दिनों तक फूलन के साथ बलात्कार किया। इसी क्रम में फूलन को बेहमई में भी रखा गया। बेहमई यमुना के किनारे है तथा यमुना के ठीक दूसरी तरफ मल्लाहों का गांव पालगांव है। अपने कैद की 23वीं रात में शौच करने गयी फूलन यमुना में कूद गयी और तैरकर पालगांव जा पहुंची। वहीं से उसने मुस्तकीम से सम्पर्क किया तथा मुस्तकीम के गिरोह में शामिल हो गयी। जब मुस्तकीम को पूरी बात का पता चला तो वह क्रोध से फूंफकार उठा। एक बार वह लाला राम व श्रीराम का पता लगाने अकेले भी बेहमई गया लेकिन गांव वालों ने उसे कुछ भी नहीं बताया। मुस्तकीम की मौत करीब 4 वर्ष पूर्व एक पुलिस मुठभेड़ में हो चुकी है।
 बहरहाल अब फूलन की जिप्दगी का लक्ष्य हो गया लाला राम, श्रीराम सहित उसके सातों आदमियों की हत्या कर अपने अपमान का बदला लेना। विक्रम की हत्या का बदला लेना तो केवल उसका एक हिस्सा था। उस रात फूलन ही पहरे पर थी जब विक्रम की हत्या हुई। इधर पुलिस इंस्पेक्टर राठौर ने दूसरा खेल खेला। उन्होंने विक्रम को मुठभेड़ में मार डालने का दावा कर दिया। लाला राम व श्रीराम इस धोखे से बौखला उठे। उन्हें डर हो गया कि भेद न खुल जाय, इसलिये पुलिस उन्हेें मार देगी। अतः उन्होंने पुलिस से मिलना-जुलना बंद कर दिया। फूलन के भाग जाने पर अब उन्हें जो भी मल्लाह मिलता, उसे वे पुलिस का जासूस समझते तथा मार देते। पालगांव के ही एक मल्लाह को उन्होंने मार दिया, क्योंकि उन्हें शक था कि वह मुखबिरी करता था। खालला गांव के एक गड़रिये को भी उन्होंने इसी उन्माद में मार दिया। फलस्वरूप गड़रियों और मल्लाहों ने फूलन की मदद चाही। इसी बीच लालाराम व श्रीराम ने उरई के प्रसिद्ध वकील गोविन्द नारायण तिवारी के लड़के देव नारायण को पकड़ा तथा 50 हजार रूपये लेकर छोड़ा। तिवारी ने कभी उन लोगों की मदद की थी जो फूलन के साथ थे। लाला राम व श्रीराम जिसे भी पकड़ते थे, उसे बेहमई में ले जाकर ही छोड़ते थे। इससे फूलन को अंदाज हो गया कि बेहमई के लोग लाला राम व श्रीराम से मिले हुये हैं।
 14 फरवरी 1981 की उस रात फूलन बेहमई में लाला राम-श्रीराम को ढूढ़ने ही आयी थी। चर्चा है कि 22 लोगों की हत्या करने के बाद भी वह माइक पर अट्टहास कर रही थी। इससे उसके भीतर धधक रहे जातीय द्वेष का अंदाजा लगाया जा सकता था। जिस तरीके से एक-एक करके उसने लोगों को बटोरा और उन्हें गांव से बाहर लिवा ले गयी, उससे यह नरसंहार हड़बड़ी में की गयी कार्यवाही नहीं लगता था। हमें रिपोर्टिंग के दौरान यह भी पता चला कि फूलन गैंग के डाकू जब नाव से यमुना पार करके उस पार उतरे तो एक व्यक्ति उधर से गुजर रहा था। डाकुओं में से एक ने उसे बुलाया तभी पीछे से एक ने अपने साथी से जल्दी चलने को कहकर उसे छुड़वा दिया। यानी वे जल्दी से जल्दी गांव पहुंचकर अधिक से अधिक आदमियों को अपने कब्जे में कर लेना चाहते थे। गांव में जिस लापरवाही से उन्होंने लूटपाट की। उससे भी यही लगता है कि उनका मुख्य लक्ष्य लूटपाट करना  नहीं था। यह नाटक संभवतः इसलिये किया गया, ताकि यह लगे कि डकैत कोेई नरसंहार करने नहीं आये थे। एक घायल का कहना था कि यदि वे लोग जरा भी सतर्क हो जाते और आपा-धापी में ही भाग लेते तो आधे से अधिक बच जाते, क्योंकि चौतरफा ऊंचे-नीचे बीहड़ से घिरे इस गांव का भूगोल ही ऐसा है।
 बेहमई नरसंहार के दो साल बाद भी पुलिस फूलन को पकड़ा नहीं पायी। तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने फूलन का आत्मसमर्पण करने का फैसला किया। इस समय तक फूलन की तबीयत खराब थी और उसके गिरोह के अधिकांश सदस्य मर चुके थे, कुछ पुलिस के हाथों मारे गये थे, कुछ अन्य प्रतिद्वंद्वी गिरोह के हाथों मारे गये थे। फरवरी 1983 में वह अधिकारियों को आत्मसमर्पण करने के लिये सहमत हुई। हालांकि उसने कहा कि उसे उत्तर प्रदेश पुलिस पर भरोसा नहीं है और उसने जोर देकर कहा कि वह केवल मध्य प्रदेश पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करेगी। उसने यह भी आग्रह किया कि वह महात्मा गांधी और हिन्दू देवी दुर्गा की तस्वीरों के सामने अपनी बाहें रखेगी, पुलिस के सामने नहीं। इसके बाद एक निहत्थे पुलिस प्रमुख ने उनसे चम्बल के बीहड़ों में मुलाकात की। तत्पश्चात मध्य प्रदेश के भिण्ड ंमें फूलन ने गांधी और देवी दुर्गा के चित्रों के समक्ष अपनी राइफल रखी। मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के समक्ष उसके गिरोह के अन्य सदस्यों ने भी उसके साथ आत्मसमर्पण कर दिया। बाद में फूलन ने उम्मेद सिंह नाम के युवक से विवाह कर लिया। वह मिर्जापुर से समाजवादी पार्टी के टिकट पर सांसद बनीं। 2001 में दिल्ली स्थित उनके घर के सामने गोली मारकर एक ठाकुर बिरादरी के युवक शेर सिंह राणा ने उनकी हत्या कर दी। इस युवक का कहना था।उसने फूलन से बेहमई काण्ड का बदला लिया है।